श्री त्रिपूर सुंदरी समेत श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर, कुमिझी
जन्म और पुनर्जन्म के महासागर में तैरने वाले लाखों श्रद्धालुओं को जीवित और सुरक्षित रखने के लिए धरती पर के असंख्य मंदिरों में विभिन्न रूपों में विद्यमान भगवान शिव, मानवता के लिए अपनी पूर्ण दया और प्रेम के साथ संसार पर कृपा बरसाते हैं। इनमें से एक श्री वेदमंदिर औषधीय जड़ी-बूटियों से भरी तीन पहाड़ियों से घिरे कुमिझी में स्थित है, जो 1200 वर्षों से अधिक पुराना है। इस मंदिर के सरोवर में भी औषधीय गुण हैं, इसलिए इस सरोवर में नहाने और शरीर पर इसकी गीली मिट्टी का लेप करने से कई प्रकार की बीमारियाँ दूर होती हैं। इस मंदिर की दूसरी विशेषता शिव लिंग पर अपने-आप छाते के रूप में फैले विश्व विरक्षा का होना है, यह दृश्य किसी भी अन्य शिव मंदिर में नहीं देखा जा सकता।
स्थल पुराणम
श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर, कुमिझी नेलीकुप्पम से पूरब की ओर जाने वाली सड़क पर गुरुवंचरी से 9 किमी की दूरी पर स्थित है। घने जंगलों के मनोहर और शांतिपूर्ण वातावरण में श्री त्रिपूर सुंदरी समेत श्री वेदगिरीश्वरर इस मंदिर को अपने दैवीय उपस्थिति से विभूषित करते हैं।
"तीन पहाड़ियों से घिरे, घने जंगलों के बीच,
श्री वेदगिरीश्वरर विराजमान हैं – जिनके भक्त
अपने जीवन का कल्याण -
गुरुवंचरी कुमिझी में पाते हैं!"
लगभग 900 वर्ष पहले, पल्लव वंश के एक राजा ने श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर का निर्माण करवाया, जिसके परिसर में एक शिव लिंगम भी बनवाया गया था। समय के साथ, मंदिर में लताएँ और पौधे उग आए जिससे वह खंडहर के जैसा दिखने लगा और उस क्षेत्र के लोगों की नजर से ओझल हो गया। इस गाँव में रहने वाला एक ब्राह्मण गंभीर रूप से बीमार था, जिसके कारण उसे घर से निकलना भी असंभव हो गया था। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि वह अपनी मृत्यु से पहले अपनी तीनों बेटियों की शादी नहीं कर पा रहा था। एक यात्री, जो भगवान शिव का भक्त था, इस गाँव से होकर जा रहा था। उसने ब्राह्मण की यह दयनीय स्थिति देखी और उसे पास के जंगल में छिपे श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर के बारे में बताया। उसने ब्राह्मण को श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर में प्रार्थना करने, मंदिर के “सरोनी तड़ागम” सरोवर में स्नान करने तथा शरीर पर इसकी गीली मिट्टी का लेप करने के लिए कहा। ब्राह्मण ने ऐसा ही किया और कुछ ही सप्ताह में एक चमत्कार हुआ। ब्राह्मण की गंभीर बीमारी पूरी तरह से ठीक हो गई और वह स्वस्थ होने लगा। जल्दी ही उसकी तीन बेटियों की शादी भी हो गई और वह अपनी बेटियों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर पाने में सक्षम होने की खुशी से फूला नहीं समा रहा था। जब उसने श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर में प्रार्थना गाना शुरू किया तो उस इलाके के लोगों को “सरोनी तड़ागम” के औषधीय शक्तियों का पता चला, और झुंड के झुंड लोग सरोवर की मिट्टी अपने शरीर पर लगाकर अपनी बीमारियों को दूर करने के लिए आने लगे।
"यहाँ तक कि उसकी मिट्टी औषधि बन जाती है और पानी दावत,
गंभीर बीमारी छूमंतर हो जाती है -
केवल श्री वेदगिरीश्वरर की प्रार्थना करने से ही"
सभी प्रकार की लताओं और पादपों तथा घने जंगलों में गुम हो जाने वाले श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर को श्री वासु ने सपने में देखा। भगवान शिव की कृपा से उन्होंने अपनी लागत पर इस मंदिर की मरम्मत कराई और मंदिर को इसकी खोई गरिमा सफलतापूर्वक वापस दिलाई। अब कुमिझी के श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर की छटा देखते ही बनती है और यहाँ दूर और पास के भक्त बार-बार आते हैं। मंदिर का “सरोनी तड़ागम” सरोवर ठंडे पानी से भरा है और भीषण गर्मियों में भी नहीं सूखता। मंदिर के सरोवर का मीठा पानी, घने जंगल का मनोहारी प्राकृतिक परिवेश, एक शांतिपूर्ण वातावरण जो श्रद्धालुओं के हृदय को दैवीय विचारों से भर देता है, मंदिर के आस-पास तीन पहाड़ियों का दृश्य, हर समय बहने वाली शीतल औषधीय हवा, श्रद्धालुओं की प्यास बुझाने वाला पानी का कभी न सूखने वाला सोता, मंदिर के गर्भ-गृह में शिव लिंगम के रूप में श्री वेदगिरीश्वरर की मूर्ति, इसके बगल में श्री त्रिपूर सुंदरी का एक मंदिर, और विल्वा मारम और वाणी मारम जैसे पेड़ों की ठंडी छाया, कुमिझी का यह मंदिर वास्तव में एक ऐसा तीर्थस्थान है जिसका जीवन में कम से कम एक बार दर्शन करना भगवान शिव का कोई भी भक्त नहीं भूलता। मंगलवार से शुक्रवार तक यहाँ एक विशेष पूजा होती है और प्रत्येक माह की पूर्णिमा के दिन गिरी वालम मनाया जाता है। मंदिर के द्वार पर वालमपुरी विनयगार की एक 18 फीट ऊंची मूर्ति अपनी पूरी गरिमा के साथ लगी है।
पूजा के लिए उनके चारों ओर, वालमपुरी, इदमपुरी, नार्थाना और पंजामुगा की मूर्तियाँ लगी हैं। अनजानेयार की सुनहरी मूर्ति मुस्कुराती प्रतीत होती है, श्रीदेवी, बूदेवी, श्रीनिवास पेरूमल, गरूड़ अलवर, दत्तात्रेयार, काला बैरावार, नवग्रह और चंद्रमा, गुरू, सूर्य, इनमें से प्रत्येक का अपना एक मंदिर है जिनमें वे बहुत वैभवशाली दिखते हैं। श्री लक्ष्मी और श्री सरस्वती के मंदिरों के अतिरिक्त, यहाँ कामाक्षी, मीनाक्षी, विशालाक्षी और महाकाली के अलग-अलग मंदिर भी हैं। अथी मारम तथा वेप्पा मारम के पेड़ों की छाया में दीमकों की एक चट्टान - जिसमें सर्प रहते हैं, के बगल में पलायथम्मम, अष्ट दुर्गा, लक्ष्मी, गणपति, अपनी दोनों पत्नियों वल्ली और देवयानी के साथ सुब्रमणियार और सबरीमाला षष्ठ के मंदिर हैं। इस मंदिर के भीतर सिर्फ देवी-देवताओं के अपने-अपने मंदिर नहीं हैं, बल्कि थेवारम गाने वाले नलयार, 18 सितार और 7 सप्त कन्याओं के अलग-अलग मंदिर भी हैं। मंदिर के पूरे परिसर में अथी मारम, अरसा मारम, वेप्पा मारम, विल्वा मारम और वाणी मारम जैसे कई प्रजातियों के पेड़ लगे हुए हैं, जिनके कारण सूर्य की गर्मी कभी जमीन तक नहीं पहुँच पाती, जिससे भक्त परिसर में आराम से घूम सकते हैं। यह एक दैवीय चमत्कार ही है कि भक्त जिनकी भी पूजा करते हैं, वे सभी देवी-देवता इस मंदिर में मौजूद हैं, जिससे भक्त सभी की पूजा एक साथ कर सकें। औषधीय ज़ड़ी-बूटियों की सुगंध, जंगल की ठंडी हवा, भक्तों के सामने से बार-बार गुजरने वाले हिरण, मोर, मैना, कोयल, सारस और धनेश जैसे चंचल वन्यजीव इस मंदिर में अब तक सितार के भ्रमण के साक्षी हैं। विवाह में समस्या, संतानहीनता का दुख, मानसिक शांति की प्राप्ति, प्रयास में सफलता पाने और गंभीर बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए दूर-दूर के भक्त श्री वेदगिरीश्वररर मंदिर में आते हैं।
"तीन पहाड़ियों से घिरे, घने जंगलों के बीच,
श्री वेदगिरीश्वरर विराजमान हैं – जिनके भक्त
अपने जीवन का कल्याण -
गुरुवंचरी कुमिझी में पाते हैं!"
लगभग 900 वर्ष पहले, पल्लव वंश के एक राजा ने श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर का निर्माण करवाया, जिसके परिसर में एक शिव लिंगम भी बनवाया गया था। समय के साथ, मंदिर में लताएँ और पौधे उग आए जिससे वह खंडहर के जैसा दिखने लगा और उस क्षेत्र के लोगों की नजर से ओझल हो गया। इस गाँव में रहने वाला एक ब्राह्मण गंभीर रूप से बीमार था, जिसके कारण उसे घर से निकलना भी असंभव हो गया था। उसे इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि वह अपनी मृत्यु से पहले अपनी तीनों बेटियों की शादी नहीं कर पा रहा था। एक यात्री, जो भगवान शिव का भक्त था, इस गाँव से होकर जा रहा था। उसने ब्राह्मण की यह दयनीय स्थिति देखी और उसे पास के जंगल में छिपे श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर के बारे में बताया। उसने ब्राह्मण को श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर में प्रार्थना करने, मंदिर के “सरोनी तड़ागम” सरोवर में स्नान करने तथा शरीर पर इसकी गीली मिट्टी का लेप करने के लिए कहा। ब्राह्मण ने ऐसा ही किया और कुछ ही सप्ताह में एक चमत्कार हुआ। ब्राह्मण की गंभीर बीमारी पूरी तरह से ठीक हो गई और वह स्वस्थ होने लगा। जल्दी ही उसकी तीन बेटियों की शादी भी हो गई और वह अपनी बेटियों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर पाने में सक्षम होने की खुशी से फूला नहीं समा रहा था। जब उसने श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर में प्रार्थना गाना शुरू किया तो उस इलाके के लोगों को “सरोनी तड़ागम” के औषधीय शक्तियों का पता चला, और झुंड के झुंड लोग सरोवर की मिट्टी अपने शरीर पर लगाकर अपनी बीमारियों को दूर करने के लिए आने लगे।
"यहाँ तक कि उसकी मिट्टी औषधि बन जाती है और पानी दावत,
गंभीर बीमारी छूमंतर हो जाती है -
केवल श्री वेदगिरीश्वरर की प्रार्थना करने से ही"
सभी प्रकार की लताओं और पादपों तथा घने जंगलों में गुम हो जाने वाले श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर को श्री वासु ने सपने में देखा। भगवान शिव की कृपा से उन्होंने अपनी लागत पर इस मंदिर की मरम्मत कराई और मंदिर को इसकी खोई गरिमा सफलतापूर्वक वापस दिलाई। अब कुमिझी के श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर की छटा देखते ही बनती है और यहाँ दूर और पास के भक्त बार-बार आते हैं। मंदिर का “सरोनी तड़ागम” सरोवर ठंडे पानी से भरा है और भीषण गर्मियों में भी नहीं सूखता। मंदिर के सरोवर का मीठा पानी, घने जंगल का मनोहारी प्राकृतिक परिवेश, एक शांतिपूर्ण वातावरण जो श्रद्धालुओं के हृदय को दैवीय विचारों से भर देता है, मंदिर के आस-पास तीन पहाड़ियों का दृश्य, हर समय बहने वाली शीतल औषधीय हवा, श्रद्धालुओं की प्यास बुझाने वाला पानी का कभी न सूखने वाला सोता, मंदिर के गर्भ-गृह में शिव लिंगम के रूप में श्री वेदगिरीश्वरर की मूर्ति, इसके बगल में श्री त्रिपूर सुंदरी का एक मंदिर, और विल्वा मारम और वाणी मारम जैसे पेड़ों की ठंडी छाया, कुमिझी का यह मंदिर वास्तव में एक ऐसा तीर्थस्थान है जिसका जीवन में कम से कम एक बार दर्शन करना भगवान शिव का कोई भी भक्त नहीं भूलता। मंगलवार से शुक्रवार तक यहाँ एक विशेष पूजा होती है और प्रत्येक माह की पूर्णिमा के दिन गिरी वालम मनाया जाता है। मंदिर के द्वार पर वालमपुरी विनयगार की एक 18 फीट ऊंची मूर्ति अपनी पूरी गरिमा के साथ लगी है।
पूजा के लिए उनके चारों ओर, वालमपुरी, इदमपुरी, नार्थाना और पंजामुगा की मूर्तियाँ लगी हैं। अनजानेयार की सुनहरी मूर्ति मुस्कुराती प्रतीत होती है, श्रीदेवी, बूदेवी, श्रीनिवास पेरूमल, गरूड़ अलवर, दत्तात्रेयार, काला बैरावार, नवग्रह और चंद्रमा, गुरू, सूर्य, इनमें से प्रत्येक का अपना एक मंदिर है जिनमें वे बहुत वैभवशाली दिखते हैं। श्री लक्ष्मी और श्री सरस्वती के मंदिरों के अतिरिक्त, यहाँ कामाक्षी, मीनाक्षी, विशालाक्षी और महाकाली के अलग-अलग मंदिर भी हैं। अथी मारम तथा वेप्पा मारम के पेड़ों की छाया में दीमकों की एक चट्टान - जिसमें सर्प रहते हैं, के बगल में पलायथम्मम, अष्ट दुर्गा, लक्ष्मी, गणपति, अपनी दोनों पत्नियों वल्ली और देवयानी के साथ सुब्रमणियार और सबरीमाला षष्ठ के मंदिर हैं। इस मंदिर के भीतर सिर्फ देवी-देवताओं के अपने-अपने मंदिर नहीं हैं, बल्कि थेवारम गाने वाले नलयार, 18 सितार और 7 सप्त कन्याओं के अलग-अलग मंदिर भी हैं। मंदिर के पूरे परिसर में अथी मारम, अरसा मारम, वेप्पा मारम, विल्वा मारम और वाणी मारम जैसे कई प्रजातियों के पेड़ लगे हुए हैं, जिनके कारण सूर्य की गर्मी कभी जमीन तक नहीं पहुँच पाती, जिससे भक्त परिसर में आराम से घूम सकते हैं। यह एक दैवीय चमत्कार ही है कि भक्त जिनकी भी पूजा करते हैं, वे सभी देवी-देवता इस मंदिर में मौजूद हैं, जिससे भक्त सभी की पूजा एक साथ कर सकें। औषधीय ज़ड़ी-बूटियों की सुगंध, जंगल की ठंडी हवा, भक्तों के सामने से बार-बार गुजरने वाले हिरण, मोर, मैना, कोयल, सारस और धनेश जैसे चंचल वन्यजीव इस मंदिर में अब तक सितार के भ्रमण के साक्षी हैं। विवाह में समस्या, संतानहीनता का दुख, मानसिक शांति की प्राप्ति, प्रयास में सफलता पाने और गंभीर बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए दूर-दूर के भक्त श्री वेदगिरीश्वररर मंदिर में आते हैं।
महाकुंभअभिषेकम, 01-06-2012
जब इस मंदिर की पुनर्स्थापना पूरी हुई थी, श्री नंदाना वारुषम, वैकासी माथम, 19वें दिन, शुक्ल पक्ष, थुवाथासी तिथि, सिथिराई नक्षत्र, सिता योग, मिथुन लग्न (या अंग्रेजी कैलेंडर के 1 जून 2012, शुक्रवार) को मकुडामुझुक्कु नानीरत्तु विझा (महाकुंभ अभिषेक) किया गया।
श्री त्रिपूर सुंदरी समेत श्री वेदगिरीश्वररर और श्री लक्ष्मी गणपति, श्री सुब्रमणियर और इसकी पत्नियाँ वल्ली और देवयानी, श्री संदीकेश्वरर, श्री नंदीकेश्वरर, श्री काला बैरवार, श्री नवग्रह मूर्ति, श्री चंद्रण, श्री गुरू भगवान, श्री सूर्यण, श्री विष्णु दुर्गा, समय गुरूवार नालवार, श्री ऐयप्पण, श्रीदेवी, बूदेवी समेत श्री श्रीनिवा पेरूमल, श्री गरुड़ अलवर, श्री अनजानेयार और मंदिर के सभी अन्य देवी-देवताओं के लिए
महा कुंभ अभिषेकम पूरी गरिमा के साथ संपन्न किया गया, जिसमें मठ के अधिकारी, बड़े-बुजुर्ग और कुमिझी गाँव के लोगों ने भाग लिया। निकटवर्ती तथा सुदूर इलाकों के भक्त महा कुंभ अभिषेकम उत्सव में उपस्थित हुए और श्री पार्वती परमेश्वरण का आशीर्वाद प्राप्त किया, जिससे उनके जीवन में कृपा और कल्याण की प्राप्ति हुई।
श्री त्रिपूर सुंदरी समेत श्री वेदगिरीश्वररर और श्री लक्ष्मी गणपति, श्री सुब्रमणियर और इसकी पत्नियाँ वल्ली और देवयानी, श्री संदीकेश्वरर, श्री नंदीकेश्वरर, श्री काला बैरवार, श्री नवग्रह मूर्ति, श्री चंद्रण, श्री गुरू भगवान, श्री सूर्यण, श्री विष्णु दुर्गा, समय गुरूवार नालवार, श्री ऐयप्पण, श्रीदेवी, बूदेवी समेत श्री श्रीनिवा पेरूमल, श्री गरुड़ अलवर, श्री अनजानेयार और मंदिर के सभी अन्य देवी-देवताओं के लिए
महा कुंभ अभिषेकम पूरी गरिमा के साथ संपन्न किया गया, जिसमें मठ के अधिकारी, बड़े-बुजुर्ग और कुमिझी गाँव के लोगों ने भाग लिया। निकटवर्ती तथा सुदूर इलाकों के भक्त महा कुंभ अभिषेकम उत्सव में उपस्थित हुए और श्री पार्वती परमेश्वरण का आशीर्वाद प्राप्त किया, जिससे उनके जीवन में कृपा और कल्याण की प्राप्ति हुई।